इस वर्ष ऑस्ट्रेलिया में हिंदी दिवस पर राष्ट्र भाषा हिंदी की धूमधाम रही। ऑस्ट्रेलिया के विभेन्न शहरों में तरह-तरह के उत्सवों का आयोजन किया गया, जिसमें हिन्दी प्रेमियों ने उत्साह पूर्वक भाग लिया। हिन्दी आज विश्व की सबसे ज़्यादा बोले जाने वाली भाषाओं में दूसरे स्थान पर है और पिछली जनगणना के अनुसार ऑस्ट्रेलिया में क़रीब चालीस हज़ार व्यक्तियों की प्रथम भाषा हिन्दी है। हिन्दी की शिक्षा दो यूनिट के रूप में हाई-स्कूल के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध है, कुछ वर्ष पहले हिन्दी सिडनी विश्वविद्यालय में भी थी परन्तु अब वह प्रौढ़ शिक्षा का एक भाग बन कर रह गई है, यहाँ विभिन्न स्तरों पर हिन्दी सिखाई जाती है। कैनबरा और मेलबर्न में हिन्दी विश्वविद्यालय में पत्राचार या डिस्टन्स से सीखी जा सकती है।


हिन्दी दिवस के अवसर पर 11 सितम्बर को सिडनी में एक कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया, जिसका आयोजन व संचालन सिडनी की लोकप्रिय कवयित्री रेखा राजवंशी ने किया और स्वेच्छा कुलश्रेष्ठ ने इसमें सहयोग दिया। कवि सम्मलेन में मेलबर्न के सुभाष शर्मा, कैनबरा के किशोर नंगरानी ने भाग लिया, सिडनी के सभी गणमान्य कवि भी यहाँ उपस्थित थे। भारतीय कौंसलावास से श्री विवेक कुमार ने दीप जलाकर कवि सम्मलेन का शुभारम्भ किया, प्रसिद्ध ग़ज़लकार ओम कृष्ण राहत ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की, सिडनी के मुख्य कवियों में शैलजा चतुर्वेदी, अब्बास राजा अल्वी, अनिल वर्मा, डॉ. भावना कुंवर और रेखा राजवंशी थे। अनिल वर्मा जी की स्वरबद्ध 'सरस्वती स्तुति', शैलजा जी का गीत, राजा जी की 'रंगीन पतंग', सुभाष जी की माइग्रेशन पर कविता, किशोर जी के राजनीतिक, सामाजिक व्यंग्य, रेखा राजवंशी के गीत 'बचपन' गीत सबने पसंद किया। इसमें कुछ सिख कवियों ने भी हिस्सा लिया और हिन्दी के प्रति अपना प्रेम दर्शाया। पिच्चासी साल के इकबाल, जसबीर वालिया, संत राम बजाज और हैरी वालिया की कविताएं लोगों ने पसंद कीं। इस कवि सम्मलेन की विशेषता थी कि इसमें युवा पीढ़ी को भी जोड़ा गया था जो आगे चलकर हिन्दी का प्रचार-प्रसार करेगी। युवा कवि पच्चीस वर्ष से कम आयु के थे और उनमें मुख्य थे राहिल और दिव्या, यह देखकर आश्चर्य हुआ कि ये युवा कवि इतनी अच्छी हिंदी में कविता लिख रहे हैं, दिव्या ने तो हिंदी की शिक्षा भी नहीं ली परन्तु उसकी पिता को समर्पित कविता प्रशंसनीय थी। पुनीत, संजम, आँचल और आकांक्षा हिन्दी विषय के रूप में पढ़ रहे हैं और उन्होंने सुभद्रा कुमारी चौहान की 'ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी' पढ़ कर सबको अपना बचपन याद दिला दिया। कुल मिलाकर 21 कवियों ने भाग लिया।


युवा पीढ़ी की कविताओं को सबने सराहा । कवि सम्मलेन में क़रीब दो सौ श्रोता उपस्थित थे। कार्यक्रम में कुछ स्थानीय संस्थाओं ने सहयोग दिया था सबके नाम लिखने मुश्किल हैं परन्तु शर्मा किचेन, मोरगेज सोलुशन, होर्न्स्बी सीनियर सिटिज़न, इंडियन डाउन अंडर, एस बी एस रेडिओ और हिन्दी गौरव इसमें मुख्य थे। श्रोताओं की संख्या और उनका उत्साह देखकर ऐसा लगता है की कविता सबके मन में दबी है ख़ासकर प्रवासियों के मन में, जो हर पल अपने देश से जुड़े रहना चाहते है, कविता के माध्यम से शायद उनके व्यथित मन को राहत मिलती है, और कुछ क्षण के लिए वे वापस देश लौट जाते हैं अपने रिश्तेदारों के बीच अपने बचपन के गाँव में।

(सिडनी से रेखा राजवंशी की र्रिपोर्ट )

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