पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक मुसलमान शायर के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता के भावानुवाद किए गए ग्रंथ का लोकार्पण किया। वह शायर हैं अनवर जलालपुरी जिनकी भावानुवादित पुस्तक ‘उर्दू शायरी में गीता’ आजकल काफी चर्चा में है। कुछ लोगों का मानना है कि श्री जलालपुरी की यह कोशिश गंगा-जमुनी संस्कृति का नमूना है। इससे सबमें सहबंधुत्व की भावना पनपेगा और समाज में समरसता आएगी।
इस पुस्तक में उन्होने गीता के सभी 701 श्लोकों का अनुवाद उर्दू शायरी में किया है। इन श्लोकों ने 1761 आशआर की शक्ल ली है।
अनवर जलालपुरी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। देश-विदेश में सैकड़ों मुशायरों एवं कवि सम्मेलनों के सफलतापूर्वक संचालन का श्रेय उनको जाता है। वे एक श्रेष्ठ शायर भी हैं।
परिकल्पना समय के लिए रवीन्द्र प्रभात ने अनवर जलालपुरी से उनकी इस किताब के सिलसिले में कुछ बात की। यहाँ पर पेश है उनसे हुई बातचीत के अंश-
प्रभात: इस किताब को लिखने की इच्छा कब जाग्रत हुई और इस पर काम करना आपने कब शुरू किया?
अनवर: देखिये जनाब इस काम की नींब तो उसी दिन पद गई थी जब मैंने 1982 में अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद से 'गीता के उर्दू मंजूम तर्जुमे और उनका तनकीदी जायजा विषय पर पी एच डी में रजिस्ट्रेशन कराया। जैसे-जैसे मैं गीता का अध्ययन करता गया मुझे पता चला कि ये तो बहुत बड़ा काम है। मैं अध्ययन तो करता गया पर इसके अनुवाद पर ध्यान नही दिया। लेकिन हमेशा इस विषय पर मेरी दिलचस्पी बनी रही। मैं इसका तर्जुमा करता रहा मगर सुस्त रफ्तार से। 2006 में मैंने इसके अनुवाद में तेज़ी लाया लेकिन मैं जब दो वर्ष तक मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में रहा तो फिर काम नहीं हो पाया। फिर मैं आखिरकार इसे पूरा करने में कामयाब रहा।
प्रभात: इस पुस्तक को लिखने के पीछे आपका उद्देश्य क्या है?
अनवर: मेरा उद्देश्य यही है कि श्रीमद्भगवद्गीता की शिक्षा और संदेश को उन उर्दू वालों तक और उन मुसलमानों तक पहुचाऊं जो गीता को एक धार्मिक ग्रन्थ तो मानते हैं किन्तु उसमें क्या कुछ लिखा है, उससे बिल्कुल अंजान हैं। गीता के पैगाम दुनिया को खूबसूरत और नेक बनाते हुए आत्मा से परमात्मा में मिल जाने की बात करते हैं। मेरे विचार से 'सार्वभौम' है 'गीता' और इसे हर धर्मावलंबी को पढ़ना और ज़िंदगी में अमल करना चाहिए।
प्रभात: आखिर वह कौन सी परिस्थितियाँ थी जिसने आपको प्रेरित किया गीता पर काम करने के लिए?
अनवर: शुरू से ही साहित्य और धर्म का तुलनात्मक अध्ययन करना मेरा शौक रहा है। जब मैंने गीता का अध्ययन किया तो मैंने पाया कि इसकी बहुत सी शिक्षाएं कुरान, अहादीस और अहलेबैत की दी हुई तालीमात से मिलती-जुलती है। लिहाजा मैंने सोचा कि इसका तर्जुमा मेरी शक्ल में जरूर होना चाहिए।
प्रभात: गीता को शायराना शक्ल देने के लिए आपने जिन किताबों की रोशनी हासिल की है, उसके बारे में कुछ बताना चाहेंगे?
अनवर: इस फेहरिस्त में बहुत सारी किताबें हैं जैसे श्री रजनीश यानि ओशो की गीता दर्शन, पंडित सुंदरलाल की गीता और कुरआन, अजमल खां की श्रीमद् भगवद् गीता, महात्मा गांधी की गीता बोध, मनमोहन लाल छाबड़ा की मन की गीता, डॉ. अजय मालवीय की गीता, स्वामी रामसुखदास की गीता प्रबोधनी, प्रकाश नगाइच की श्रीमद् गीता, हसनुद्दीन अहमद की गीता, ख्वाजा दिल मोहम्मद लाहौरी की दिल की गीता प्रमुख है।
प्रभात: गीता हिंदुओं का पवित्र ग्रंथ है, इसकी तर्जुमानी में कभी कोई समस्या तो उत्पन्न नहीं हुई?
अनवर: नही कैसी समस्या? यह सही है कि गीता हाथ में रखकर न्यायालय में सच बोलने की शपथ ली जाती है, लेकिन गीता सिर्फ धार्मिक ग्रन्थ ही नहीं है, इसमें समस्त वेदों का सार, जीवन जगत, जन्म-मरण, व्यक्ति और सृष्टि के सम्बन्ध में अनेक सूत्र हैं जो सर्वभौम हैं। यह एक दार्शनिक ग्रन्थ है। इसे कोई भी धर्म वाला पढ़ सकता है और समझ सकता है।
प्रभात: आज का समाज नफ़रतों में इतना आकंठ डूबा है, कि भाईचारे की नई-नई परिभाषाएँ गढ़ी जा रही है। इस पर आपकी क्या राय है?
अनवर: मुझे पूरा विश्वास है कि हिन्दू और मुसलमानों के बीच पनपी दूरियां संवाद से ही घटेंगीं। आज धार्मिक और राजनीतिक नेता साम्प्रदायिक एकता बनाने में असफल साबित हुए हैं। ऐसे में अब बस अध्यात्म का ही रास्ता, सूफी का ही रास्ता बचा है जिस राह पर चलकर नफरत से दूर इंसानियत को एकता की राह पर चलाया जा सकता है।
प्रभात: गीता बाँचने के बाद आपको कैसा एहसास हुआ?
अनवर: फल की चिन्ता न करते हुए निरंतर कर्मशील रहना यही गीता का मूल उद्देश्य है। गीता के अनुवाद में उन्हें एक-एक श्लोक का अनुवाद करने के लिए छः-छः पंक्तियां लिखनी पड़ी हैं। लेकिन मुझे खुशी है कि अनुवाद इतना बोधगम्य, सहज और सरल है कि होंठों पर तुरंत बैठ जाता है।
प्रभात: इस पुस्तक से जुड़ी कोई और बात बताएं ।
अनवर: मुझे अचंभा होता है कि लोग जिस धर्म को मानते हैं उसी के विषय में उनका ज्ञान न के बराबर है। एक पत्रकार महोदय, जो कि ब्राह्मण हैं, से मैंने पूछा कि गीता में आपका पसंदीदा श्लोक कौन सा है तो वे नाही बता सके। यहाँ तक कि पहला और आखिरी श्लोक भी नाही बता सके। 90 फीसदी हिन्दू नही जानते कि गीता की क्या शिक्षाएं हैं। यही हाल बहुत से मुसलमानों का भी है। उनको भी अपने मजहब से जुड़ी बहुत सी बातों का ज्ञान नही है।
प्रभात: विभिन्न धर्मों के बारे में आपकी क्या राय है?
अनवर: विभिन्न धर्मों को लेकर मेरा अबतक जो तुलनात्मक अध्ययन रहा है, वह यह है कि सभी धर्मों की शिक्षाएं कुछ हद तक एक जैसी ही है। बस फर्क है तो ज़िंदगी गुजारने के तरीके में और इबादत करने के तरीके मे लेकिन इबादत करने के मकसद में कोई भी अंतर नही है। सभी धर्मों का उद्देश्य मनुष्य को मोक्ष और निजात दिलाना है।
प्रभात: अब आगे की आपकी क्या योजनाएँ हैं?
अनवर: रबीन्द्र नाथ टैगोर की 'गीतांजली' और उमर खय्याम की 'रुबाइयतें खय्याम' का हिन्दी-उर्दू में शेरी तर्जुमा का कम लगभग पूरा हो चुका है जो शीघ्र ही पाठकों को पढ़ने को मिलेगा।
प्रभात: परिकल्पना के पाठकों से रूबरू होने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
अनवर: शुक्रिया आपका भी।