पोर्ट लुई । हिन्दी भाषा के सम्मान में, उसकी श्रीवृद्धि के लिए, अनेक साहित्यिक और मनोरंजक गतिविधियों से परिपूर्ण ‘हिन्दी सप्ताह’ को हर्षोल्लास के साथ मनाना मॉरिशस के महात्मा गांधी संस्थान के हिन्दी अध्ययन विभाग में अब एक परम्परा हो गई है।
2010 इस सन्दर्भ में विशेष रहा। क्योंकि सप्ताह भर पूरे विभाग के छात्र-चात्राओं द्वारा अनेकानेक गतिविधियों का सफलतापूर्वक संचालन तो हुआ ही इसके अतिरिक्त कुछ अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं ने इस पूरे हिन्दी सप्ताह आयोजन में चार चाँद लगा दिए।
सर्वप्रथम संक्षिप्त ब्यौरा गतिविधियों का - सोमवार 13 सितम्बर को निर्धारित स्वरचित कविता पठन प्रतियोगिता में स्नातक स्तर के लगभग चालीस छात्रों ने भाग लिया। छात्रा रीमा लाईटू ने प्रभु निर्मित मणुष्य द्वारा प्रभु-पुत्री धरती के सर्वनाश की कथा कहने वाली कविता “परमात्मा और मणुष्य की कथा” बड़े चाव से सुनाई और प्रथम पुरस्कार जीता।
14 सितम्बर, हिन्दी दिवस के अवसर पर विश्व हिन्दी सचिवालय के महासचिव, साहित्यकार और प्रसिद्ध अनुवादक डॉ. राजेन्द्र प्रसाद मिश्र जी का अद्भुत व्याख्यान हुआ। हिन्दी दिवस का पूरा इतिहास उन्होंने अपनी रोचक शैली में छात्रों और उपस्थित श्रोताओं के समक्ष इस प्रकार रखा कि हिन्दी पढ़ने वाले हर छात्र उससे भलि-भाँति परिचित हो सके ।
15 सितम्बर को छात्रों की प्रिय प्रतियोगिता अंत्याक्षरी रखी गई। साठ छात्रों ने चौदह टोलियों में ख़ूब गाया, और हिन्दी के प्रथम राजदूत ‘सिनेमा’ के प्रति अपनी रूचि का प्रदर्शन किया। ‘लाल परियों की टोली’, जो हिन्दी के साथ साथ मॉरिशस विश्वविद्यालय से फ्रेंच, अँगरेज़ी और इतिहास जैसे विषय पढ़ती हैं, प्रथम पुरस्कार ले गई।
इस वर्ष की नुक्कड़ नाटक प्रतियोगिता ने सभी को मुग्ध कर लिया। ग्यारह टोलियों में 60 से अधिक छात्रों ने अपनी कला दिखाई। एक-एक नाटक समाज की बड़ी-से-बड़ी समस्या को उभारने वाला सिद्ध हुआ। स्नातक स्तर के छात्रों ने पर्यावरण-सुरक्षा, विवाहेत्तर सम्बन्ध, शिक्षा, आधुनिकता, मानव-मूल्य आदि विषयों पर जिस तरह के चुभने वाले सम्वाद कहे उनको सुनकर दर्शक-वर्ग दंग रह गया। यहाँ स्नातक तृतीय वर्ष की टोली ने समाज में बढ़ती समस्याओं के समक्ष आम जनता और राजनीतिज्ञों की अनासक्त प्रवृत्ति को उभारा और प्रथम पुरस्कार ले गई और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार तृतीय वर्ष की ही छात्रा भावना रामबालक को प्राप्त हुआ।
इनके अतिरिक्त ‘हिन्दी सप्ताह’ का प्रचार करने के लिए छात्र स्वयं पोस्टर बनाकर पूरे संस्थान में लगाने से नहीं चूके और यहाँ भी पुरस्कार रखे गए थे जो प्रथम वर्ष की छात्रा याचना मिश्रा ने जीता।
हिन्दी सप्ताह के ही अंतर्गत छात्रों की भाषा के विकास के उद्देश्य से लगभग डेढ़ सौ छात्रों के बीच श्रुतलेख प्रतियोगिता चलाई गई। स्नातक वर्ग में बी.ए. द्वितीय वर्ष की प्रमोधिनी देवी फागू ने प्रथम पुरस्कार जीता। स्नातकोत्तर वर्ग में केवल नायक ने।
छात्रों के लिए आयोजित इन गतिविधियों और प्रतियोगिताओं का समापन एक भव्य पुरस्कार वितरण समारोह के द्वारा किया गया। जहाँ एक बार फिर छात्रों ने संगीत, नाटक और कविता में अपनी प्रतिभा दिखाई। प्रसाद जी की ‘जाग री’ को वर्षा रानी बिसेसर-दुलुआ के निर्देशन मे संगीतबद्ध करके गाया गया। परंतु इस समारोह का सबसे प्रमुख आकर्षण था, संस्थान के हिन्दी विभाग द्वारा प्रसिद्ध साहित्यकार अभिमन्यु अनत जी का सम्मान । अंतराष्ट्रीय स्तर पर असंख्य सम्मान प्राप्त कर चुके अभिमन्यु जी से जब उद्घोषक गुलशन सुखलाल ने आग्रह किया कि यह एक छोटे विभाग के नन्हे छात्रों का प्रेम है जो सम्मान रूप में उनको दिया गया और आग्रह किया कि इसे अपने बड़े-बड़े शील्ड के मध्य में एक छोटी जगह दें तब अनत जी ने बहुत ही रोचक ढंग से उत्तर देते हुए कहा कि “ गुलशन जी अगर मंच पर एक नन्हा शिशु और आप एक साथ खड़े हों तो मैं किसको गोद में उठाऊँगा?” यह बात सुनकर छात्रों का मन खिल उठा।
इस अवसर पर महात्मा गांधी संस्थान की निदेशिका श्रीमति कुंजल ने बड़े गर्व से मंच पर आकर कहा कि “आज मैं जो भी हूँ वह हिन्दी के ही बलबूते पर हूँ” इतनी बड़ी संस्था की निदेशिका के मुख से ये शब्द छात्रों के लिए प्रेर्णा के बीज बने। अन्य वक्तव्यों में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद मिश्र ने हिन्दी सप्ताह की भावना को सप्ताह भर नहीं बल्कि आजीवन धारण करने के महत्व पर बल दिया और विभागाध्यक्ष डॉ. राजरानी गोबिन ने हिन्दी सप्ताह मनाने और छात्रों के बहुमुखी विकास में उसके योगदान पर बल देते हुए अपना वक्तव्य दिया।
इस वर्ष के हिन्दी सप्ताह के स्मृति पटल पर जयप्रकाश मानस के नेतृत्व में रायपुर, छतीसगढ़ से प्रमोद स्मृति संस्थान की हिन्दी उथान यात्रा के भी चित्र अंकित रहेंगे। व्यस्तता की कारण सभी लोग संस्थान की गतिविधियों में पूर्ण उपस्थिति तो नहीं दे पाए परंतु नुक्कड़ नाटक के समय प्रतिनिधिमण्डल का आगमन हो पाया और जब विनय गुदारी ने छात्रों को बताया कि सृजनगाथा और हिन्दी गाथा के जनक उनके अतिथि के रूप में पधारे है तो छात्रों के मुखमण्डल चमक उठे।
हिन्दी सप्ताह की परम्परा अगले वर्ष और शक्ति के साथ और उत्साह के साथ आएगी। आशा है मॉरिशस के हिन्दी प्रेमियों के समान अब से भारत के हिन्दी सेवक भी प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से हमारे साथ जुड़ पाएँगे।
(गुलशन गंगाधरसिंह सुखलाल की रिपोर्ट )
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