जमशेदपुर| 04 सितंबर , 2011 को जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज के सभागार में प्रगतिशील लेखक संघ और ‘परिकथा ‘ के तत्वावधान में काव्य –विमर्श और काव्य–पाठ का एक विशिष्ट कार्यक्रम आयोजित किया गया | नगर के साहित्य –प्रेमियों का कहना है कि पिछले दो दशकों के अंतराल में इस लौह – नगरी में इस स्तर का अनूठा कार्यक्रम सम्पन्न नहीं हुआ था | बड़ी बात यह है कि बाजारवाद के इस आंधी दौड़ मे व्यस्त नगर के शिरकत करने वाले लोगों में लगभग 150 आगंतुक साहित्य से सरोकार रखने वाले थे और सब के सब कार्यक्रम के अंत तक सभागार में मन से बने रहे | उनके चहरे पर खुशी की कौंध थी और उन्होंने कार्यक्रम के आयोजकों के प्रति इसके लिए तहेदिल से आभारी व्यक्त किया | यही नहीं , कई टी.वी. चैनलों और प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों के संपादक और संवाददाता भी अंत तक वहाँ जमे रहे |
उक्त कार्यक्रम में प्रगतिशील लेखक संघ के उपाध्यक्ष और प्रतिष्ठित समालोचक श्री डा. खगेन्द्र ठाकुर (पटना ) और वरिष्ठ लोकधर्मी कवि शंभु बादल के अतिरिक्त चर्चित साहित्यकार रणेन्द्र , युवा कवि शहंशाह आलम (पटना) , कहानीकार अभय (सासाराम ), पंकज मित्र ( रांची), अशोक सिंह (दुमका ) , अरविन्द श्रीवास्तव (मधेपुरा ,बिहार ) और सुशील कुमार ( दुमका) विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित हुए थे | नगर के गणमान्य साहित्यकार और “परिकथा” के संपादक शंकर , कथाकार जयनंदन और कमल , शायर अहमद बद्र और मंजर कलींम, कवयित्री ज्योत्सना अस्थाना के साथ संध्या सिन्हा , गीता नूर, उदय प्रताप हयात, मुकेश रंजन और शशि कुमार भी मौजूद थे |
पूरा कार्यक्रम दो सत्रों में संयोजित था | प्रथम सत्र 3.30 बजे अपराहन से आरंभ हुआ जो कवि सुशील कुमार की कविताओं का संग्रह ‘तुम्हारे शब्दों से अलग ‘ के काव्य-विमर्श पर केन्द्रित था और दूसरा सत्र (जो 6.00 बजे अप. से प्रारम्भ हुआ ) अतिथि-साहित्यकार और नगर के चुनिंदों कवियों के काव्य-संध्या का | कार्यक्रम का शुभारंभ चर्चित युवा कवि और अनुवादक ( चर्चित काव्य संग्रह ‘नगाड़े की तरह बजते शब्द’ –निर्मला पुतुल ) के काव्य-विमर्श से हुआ जिन्होंने कहा कि सुशील कुमार का काव्य –संग्रह ‘तुम्हारे शब्दों से अलग ‘ बाजार के बढ़ते आतंक और शब्दों की बाजीगरी करते शब्द तशकरों के खिलाफ एक वैचारिक जंग का एलान है | इस संग्रह की कविताओं में न तो किसी बौद्धिक अभेद्यता का आतंक है और न ही किसी कौशल को चमत्कृत कर देने का उपक्रम और न ही अनुभवों को सरलीकरण करने वाली भावुकता | दूसरे वक्ता कवि अरविंद श्रीवास्तव ने बताया कि सांस्कृतिक बंजरपन के विरुद्ध उंम्मीद की कुछ कोमल –मुलायम पंक्तियों के साथ सुशील कुमार की प्रस्तुत संग्रह की कवितायें समय की आहट को बखूबी पहचानती है | युवा कवि शहंशाह आलम ने रचनाओं को आम आदमी के काफी निकट बताया जिसमें सामाजिक चेतना का स्वर मुखर है जबकि वरिष्ठ लोकधर्मी कवि शंभु बादल ने कविता-पुस्तक को जन प्रगतिशील विचार का प्रतिबद्ध वैचारिक दस्तावेज़ कहा | शंकर ने सूक्ष्मता से संग्रह की कविताओं की चर्चा कराते हुए उसे जन-भावनाओं से ओत–प्रोत और जीवन में आशा जगाने वाली बताया | कथाकार जयनंदन ने इसे आदिवासी जन –जीवन की गाथा कहकर इसकी सराहना की और अहमद बद्र ने पुस्तक के आमुख पर विस्तार से प्रकाश डाला | प्रथम सत्र के अध्यक्षीय संभाषण में सुशील कुमार की कविताओं की रचना –प्रक्रिया पर बारीकी से चर्चा कर इसे संप्रति लिखी जा रही कविताओं की कड़ी में राजनीतीक चेतना का महत्वपूर्ण काव्य –संग्रह कहा और उसके संभावनाओं पर विमर्श करते हुए ऐसे ही लिखते रहने की कामना की | दूसरे सत्र में सभी मंचासीन अतिथियों और नगर के प्रमुख कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ कर श्रोताओं को सम्मोहित कर लिया | शहर के जाने –माने व्यक्तित्व मार्क्सवादी साहित्यकार शशि कुमार धन्यवाद –ज्ञापन से कार्यक्रम का समापन हुआ |
(अरविन्द श्रीवास्तव की रपट )
1 टिप्पणियाँ:
सार्थक व जीवंत प्रस्तुति
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