साहित्य-सृजन के क्षेत्र में जाने माने शख्सियत डॉ. कुमार विमल का
पटना में निधन हो गया। उन्होंने 13 अक्टूबर 2011 को अपना 80 वां जन्म दिन मनाया था। 80 साल के हो जाने के बावजूद साहित्य-सृजन करते रहे। आजकल के दिसंबर अंक में उनका लेख प्रकाशित हुआ है। विभिन्न विधाओं में उनकी दर्जनों पुस्तकें जहां चर्चित हैं वहीं साहित्य के क्षेत्र में धरोहर के रूप में स्थापित भी हैं। डॉ. कुमार विमल के निधन पर साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गयी है। सृजनगाथा परिवार की ओर से डॉ. कुमार विमल को श्रद्धांजलि।
कुमार विमल का जन्म 12 अक्टूबर, 1931को हुआ था । साहित्यिक जीवन का प्रारंभ काव्य रचना से, उसके बाद आलोचना में प्रवृति रम गई। 1945 से विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी और आलोचनात्मक लेख आदि प्रकाशित हो रहे हैं। इनकी कई कविताएं अंगे्रजी, चेक, तेलगु, कश्मीरी गुजराती, उर्दू, बंगला और मराठी में अनुदित। वे मगध व पटना विश्वविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक रहे । बाद में निदेशक बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना । वे संस्थापक आद्य सचिव, साहित्यकार कलाकार कल्याण कोष परिषद्, पटना नांलदा मुक्त विश्वविद्यालय में कुलपति भी रहे । इसके अलावा अध्यक्ष, बिहार लोक सेवा आयोग, बिहार विश्वविद्यालय कुलपति बोर्ड, हिन्दी प्रगति समिति, राजभाषा बिहार, बिहार इंटरमीडियएट शिक्षा परिषद् और बिहार राज्य बाल श्रमिक आयोग भी रहे । वे ज्ञानपीठ पुरस्कार से संबंधित हिन्दी समिति के सदस्य और बिहार सरकार उच्च स्तरीय पुरस्कार चयन समिति के अध्यक्ष सहित साहित्य अकादमी, दिल्ली, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर और भारत सरकार के कई मंत्रालयों की हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य रह चुके हैं।
उनकी कई आलोचनात्मक कृतियां, पुरस्कार-योजना समिति (उत्तर प्रदेश) बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना,राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह विशेष साहित्यकार सम्मान, हरजीमल डालमिया पुरस्कार दिल्ली, सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार, आगरा तथा बिहार सरकार का डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान अर्जित कर चुकी हैं ।
अब तक लगभग 40 पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है जिनमें आलोचना में ‘मूल्य और मीमांसा', ‘महादेवी वर्मा एक मूल्यांकन’, ‘उत्तमा', कविता में - ‘अंगार', ‘सागरमाथा' प्रमुख हैं । उनके संपादित ग्रंथ- गन्धवीथी (सुमित्रा नंदन पंत की श्रेष्ठ प्रकृति कविताओं का विस्तृत भूमिका सहित संपादन संकलन), ‘अत्याधुनिक हिन्दी साहित्य' आदि हैं ।
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