प्रगतिशील लेखक संघ का हीरक जयंती समारोह संपन्न
लखनऊ । प्रगतिशील लेखक संघ (पर्लेस) के हीरक जयंती समारोह का आयोजन राजधानी में दो दिनों तक किया गया। इसमें संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. नामवर सिंह राष्ट्रीय महासचिव अली जावेद के साथ संगठन के नामी पदाधिकारियों की मौजूदगी हुई। समारोह के तहत पुरानी पीढ़ी और नयी पीढ़ी में मदभेद सामने आये। आरक्षण जैसे मसले पर डा. नामवर सिंह ने एक नई बहस को छेड़ा तो बिहार के पदाधिकारी राजेन्द्र राजन ने रत्नों की अगूंठी पहने पिण्डदान करने वालों से तौबा करने की बात की कह डाली। खूब हो हल्ला हुआ और अंत में जब अध्यक्षीय सम्बोधन डा. नामवर सिंह ने किया तो उन्होंने पर्लेस के एजेण्डे को ही पुराना बता दिया। उन्होंने कहा कि 50 के दशक में बने घोषणापत्र को बदलते की जरूरत है और उन्होंने दुख जताया कि इस अधिवेशन में नया घोषणापत्र नहीं बन पाया और क्यों नहीं बना इस पर सवाल भी खड़ा किया।
तेवर कड़ा करते हुए कह गये कि अगर बन जाता तो शताब्दी वर्ष समारोह में जो शामिल होते तो उनके पास एक लक्ष्य होता या एक प्रारूप होता, जिसपर वह काम करते। वह इस बात से भी नाराज थे कि आज तक प्रगतिशील लेखकों के अन्य संगठनों के साथ हम साझा मोर्चा नहीं बना पाये। इसपर भी उन्होंने सवाल उठाया तो महासचिव ने कहा कि बात हो रही है। तब वह फिर नाराज हो गये और कहा कि बात कब तक होती रहेगी अबतक तो साझा मोर्चा बन जाना चाहिए। इस विवाद को महासचिव ने विराम दिया जब उन्होंने प्रेक्षागृह में मौजूद सभी पदाधिकारियों से हाथ उठाकर साझा मोर्चा मनाने को एजेण्टे में प्रमुखता से शामिल करने का प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित कर लिया और कहा कि 12 तारीख को होने वाले बैठक में साझा मोर्चा बन जाएगा।
इस विवाद को शांत करने के बाद संघ के अध्यक्ष का तेवर नरम हुआ और उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब एक कमेटी बनाकर अगले 25 वर्षो की रूपरेखा बन जाए। उन्होंने कहा कि हमारे सामने बहुत सी चुनौतियां है, जिससे हमे मुह नहीं मोड़ना चाहिए। वैश्विक आर्थिक मंदी आने की आशंका व्यक्त करते हुए आखिर कबतक सरकार विकास का हवाला देती रहेगी। इसे उन्होंने इस मंदी को देश पर पहला सबसे बड़ा खतरा बताया। उन्होंने कहा कि दूसरा सबसे बड़ा खतरा चीन है जो देश को तीन तरफ से घेर चुका है। यह संकट नये चीन से और विकट होने वाला है, जिसपर लोगों का ध्यान नहीं जा रहा है। इस कारण सभी लोगों को अन्य विमर्श से दूर होकर बेहतर जिन्दगी और बेहतर हिन्दुस्तान के लिए काम करना होगा, जिसमें अन्य प्रगतिशील संगठनों की बहुत जरूरत है।
डा. नामवर सिंह
"इस सम्मेलन की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब एक कमेटी बनाकर अगले 25 वर्षो की रूपरेखा बन जाए।"
पेपरमिल कालोनी स्थित कैफी आजमी अकादमी सभागार में वरिष्ठ भाकपा नेता अतुल कुमार अंजान ने कहा कि आज साहित्य भी आवारा पूंजी के साथ आवारा साहित्य का उत्पादन शुरू हो गया है, जिससे लेखकों को लड़ना होगा। साहित्य और संस्कृति ही बेहतर राजनीतिक विकल्प का रास्ता बनाते हैं। इसलिए पर्लेस को इस जिम्मेदारी को निभाना होगा। वरिष्ठ लेखक प्रो. चौथीराम यादव ने कहा कि सोवियत यूनियन के विघटन को साहित्यकारों ने मार्क्सवादी समाजवाद के खात्में के रूप में ले लिया जो एक भ्रामक विश्लेषण था। साहित्य को फिर से मार्क्सवाद को एक विकल्प के रूप में प्रस्तुत करना होगा यही प्रगतिशील लेखक संघ की राजनीतिक जिम्मेदारी है। ऐसे में संगठन को किसान मजदूर आदि सहवर्ती आंदोलनों से जोड़ना होगा। साथ ही जनता के प्रति प्रतिबद्धता लानी होगी तभी पक्षधरता के जोखिम सामने आएंगे। वरिष्ठ आलोचक वीरेन्द्र यादव ने कहा कि प्रगतिशील लेखक संघ आधुनिक भारत का पहला ऐसा आंदोलन था जिसने साहित्य को राजनीति से जोड़ने काम किया था। आज इस परम्परा को फिर से मजबूत बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि उपनिवेशिक काल में पर्लेस ब्रिटिश साम्राज्यवाद के साथ-साथ धार्मिक कठमुल्लावाद से भी लड़ा था। आज इस आंदोलन को फिर से इस भूमिका में आना होगा। वाराणसी से आये मूलचंद सोनकर ने कहा कि आज दलितों और पिछड़ों के सवालों को भी अपने विमर्श में रखना होगा। सावित्री बाई फूले, पंडिता रमाबाई को आप संज्ञान में नहीं लेंगे तो उनका गलत लोगों द्वारा इस्तेमाल आप नहीं रोक पाएंगे। दिल्ली से आये वरिष्ठ लेखक श्याम कश्यप ने कहा कि संगठन पर अपनी राजनीति जिम्मेदारियों का एहसास होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जबतक संगठन का पार्टी के साथ सम्बंध रहा आंदोलन अपनी भूमिका में ज्यादा कारगर साबित रहा।
इस अवसर पर दीनू कश्यप, प्रो. काशीनाथ सिंह,राजन,साबिर रुदौलवी, डा. गया सिंह, जयप्रकाश घूमकेतु,संजय श्रीवास्तव, आनन्द शुक्ल, हरमंदिर पाण्डेय, नरेश कुमार, सुभाष चंद्र कुशवाहा, रवि शेखर व शाहनवाज आलम आदि ने भी अपनी सहभागिता दर्शायी।
सीबा आलम पर हुए हमले की निंदा :
समारोह के समापन सत्र में आलोचक वीरेन्द्र यादव ने दिल्ली में लेखिका सीबा असलम फहमी पर हुए हमले की निन्दा की। उन्होंने कहा कि फहमी एक धर्म की संकीर्णता पर बेबाकी से लिख रही थी साथ ही उनका स्त्री विमर्श की कारगर साबित हुआ। कुछ धर्म के ठेकेदारों को उनका लेखन पसंद नहीं आया और उन्होंने उनपर हमला कर दिया। उन्होंने संगठन की तरफ से प्रस्ताव पारित करके सरकार से तुरंत हमला करने वालों की गिरफ्तारी की मांग करते हुए कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग की। साथ असलम को सुरक्षा भी देने की गुहार सरकार से की।
(लखनऊ से मनोज कुमार पाण्डेय की रपट )
5 टिप्पणियाँ:
एक वेहतरीन और समग्र रपट के लिए बधाई !
बहुत ही प्यारा रपट है !
सुन्दर और सार्थक !
VERY NICE
अच्छी रिपोर्टिंग के लिए धन्यवाद।
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