
’’बदलती परिस्थितियों के कारण बदलते समाज की मिटती खूबसूरती को मिटने से बचाने के लिए जरूरी है वैकल्पिक मीडिया।’’ ये उद्गार दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. गोपेश्वर सिंह ने पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज (सांध्य) द्वारा ‘ग्लोबल मीडिया और हिन्दी पत्रकारिता’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन अवसर पर व्यक्त किए। प्रो. सिंह ने इस अवसर पर कहा कि बदलते समय के साथ समाज की मानसिकता बदले और मीडिया की मानसिकता न बदले, यह हो ही नहीं सकता। लेकिन मीडिया की बदलती मानसिकता ने हिन्दी पत्रकारिता के पुराने आदर्शों और संघर्षों की खूबसूरती को मिटाने में अपनी जो भूमिका निभाई उससे बचे रहने के लिए वैकल्पिक मीडिया ही एकमात्र उपाय है। 

दिल्ली विश्वविद्यालय के पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज (सांध्य) द्वारा आयोजित इस संगोष्ठी का उद्घाटन पूर्व प्राचार्य प्रो. मोहन लाल, प्रो. गोपेश्वर सिंह तथा सुधांशु रंजन द्वारा किया गया। इस अवसर पर बोलते हुए प्रो. मोहन लाल ने हिन्दी पत्रकारिता की मिशनरी भावना के जज्बे के ध्वस्त होने के लिए बाज़ारवाद को दोषी ठहराया। संगोष्ठी के प्रथम सत्र में प्रसिद्ध पत्रकार धीरज कुमार ने ‘आम आदमी की पत्रकारिता और वैकल्पिक मीडिया’ विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि बाज़ार के कारण ही आज का पत्रकार निष्पक्ष नहीं रह पाता। लेकिन आम आदमी की इस पत्रकारिता के क्षरण होने के साथ-साथ उसके लिए वैकल्पिक मीडिया के लिए हिन्दी ब्लॉगिंग, फेसबुक, ट्विटर और अन्य सोशल वेबस्पेस साइटों ने बेहतर माध्यम के तौर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। वर्तिका नन्दा ने उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि इन सोशल नेटवर्किंग साईट्स ने आम आदमी की संवेदनाओं और भावनाओं के सुख को फिर से जागृत किया है। उनके अनुसार मीडिया ने अपनी ताकत नहीं खोई बल्कि इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स के कारण पुन: संजोई है और अब नया मीडिया और आम आदमी दोनों ही ताकतवर होते जा रहे हैं। प्रथम सत्र के अध्यक्ष प्रो. दुर्गाप्रसाद गुप्त के अनुसार ग्लोबल मीडिया ने हमारी ज़िन्दगी को बदल दिया है और बाज़ार के दबाव में राष्ट्र में असहमति की आवाज़ को दबाने के लिए ही पत्रकारिता का चरित्र बदलकर हाजिर हुआ है। 

संगोष्ठी के दूसरे सत्र में डॉ. हरीश अरोड़ा ने ‘बाज़ार का छद्म यथार्थ और मूल्यहीन पत्रकारिता’ विषय का प्रवर्त्तन करते हुए कहा कि ‘आज़ादी से पहले जिन मूल्यों की तलाश में आम आदमी ने संघर्ष किया, वही मूल्य आज़ादी के बाद और अधिक विघटित हो गए हैं। ऐसे में आम आदमी के पास अपनी बात को कहने के विकल्प नहीं रहा था परंतु अब आम आदमी के पास तकनीक आने के बाद उसने अपने लिए विकल्पों की स्वयं ही खोज की। उसने तकनीक को ही अपनी आवाज़ और अभिव्यक्ति का हथियार बनाया।’ इस विषय पर बोलते हुए डॉ. लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने कहा कि ‘भारत में आज भी बाज़ार के छद्म यथार्थ के हिन्दी पत्रकारिता पर प्रभाव के कारण ही नहीं, कहीं न कहीं बाज़ार के अलावा कुछ युवा पत्रकार भी इस हिन्दी पत्रकारिता को संवेदनहीन बनाने के दोषी हैं लेकिन इसके बावजूद भी दूरदर्शन और आकाशवाणी अब भी मूल्यों को बचाए रखने वाली पत्रकारिता का हिस्सा बने हुए हैं।’ डॉ. अमरनाथ अमर ने माना कि दूरदर्शन ने सामाजिक मुद्दों और अन्य वैचारिकों विषयों पर विमर्श लिए अनेक कार्यक्रमों का निर्माण किया है और आज भी कर रहा है। जरूरत है कि समाज अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को इन कार्यक्रमों के साथ जोड़े और नए भविष्य के निर्माण में बाज़ारवाद के आगे नत मीडिया से बचकर मूल्यवादी पत्रकारिता के मीडिया का आधार दे सकें। इस सत्र के अध्यक्ष प्रसिद्ध पत्रकार और राजनीति विश्लेषक डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने अपने विचार रखते हुए कहा कि ‘ पेड न्यूज़ बाज़ारवाद और भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा है। अखबार के अंतकरण का स्वामी, आज पैसे लेकर खबर छापता है, केवट पैसे लेकर पार उतारता है, यह बाज़ारीकरण की पराकाष्ठा है। हिन्दी पत्रकारिता कभी व्रत हुआ करती थी, अब वह वृत्ति बन गई है और इसमें वृत्ति की विकृतियाँ भी आ रही हैं। पत्रकारिता को पावन करने के लिए पहले स्वयं पवित्र होना होगा, प्रशासन को शुद्ध करना होगा।’



(दिल्ली से पवन चन्दन की रपट )
3 टिप्पणियाँ:
अच्छी रपट, पवन चंदन का आभार।
बहुत सुन्दर विचार और सही बात....
बिलकुल सही विचार। धन्यवाद।
Post a Comment